
बेटी की सुरक्षा और पालन पोषण के लिए तमिलनाडु की महिला ने तीन दशकों तक पुरुष बनी रही
30 साल तक, तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले की एक माँ ने अपनी अकेले अपनी बेटी की हिफाज़त और पालन पोषण के लिए पुरुष का वेश को अपना लिया।
थूथुकुडी जिले के कटुनायक्कनपट्टी गांव की 20 वर्षीय महिला पेचियम्मल ने तीन दशक पहले अपनी शादी के मात्र 15 दिन बाद ही पति को दिल का दौरा पड़ने से दुखद मौत हो गयी थी ।
पेचियम्मल ने एक बेटी (शनमुगसुंदरी) के जन्म लेने के बाद काम करना शुरू किया, लेकिन उसे कई प्रकार से परेशान किया जाने लगा। लोग उसके चरित्र पर भी कीचड़ उछालने लगे ।
पेचियम्मल ने अपनी इकलौती बेटी के बेहतर भविष्य के लिए पुनर्विवाह नहीं करने का फैसला किया, इसमें किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके लिए एक पुरुष के रूप में वेश बदल कर मुथु (एक पुरुष नाम) बनने का फैसला किया।
परिवर्तन (महिला से पुरुष रूप में)
उसने अपने बाल काट कर पुरषों की तरह छोटे कर लिए, पहनावे में लुंगी और शर्ट पहनने लगी जिससे वह आम लोगों के नज़र में एक पुरुष के तरह दिखने लगी।
मुथु ने पिछले तीन दशकों (तीस वर्षों) में कई तरह की नौकरियाँ की, जिसमें चेन्नई और थूथुकुडी में होटल और चाय की दुकानें शामिल हैं।
उन्होंने जहां भी काम किया, वहां उनका उपनाम 'अन्नाची' था (एक पुरुष के लिए एक पारंपरिक नाम)।
परोट्टा (पराठा) और चाय की दुकान में काम करने के बाद मुथु को 'मुथु मास्टर' उपनाम से बुलाया जाने लगा ।
"मैंने एक पेंटर, एक चाय की दुकान, पैरोटा की दुकान और यहां तक कि 100 दिन ठेके के रूप में काम किया," पेचियम्मल ने बताया।
मैंने अपनी बेटी को बेहतर भविष्य प्रदान करने के लिए एक-एक पैसा जोड़े। कुछ दिनों के बाद मुथु मेरी पहचान बन गई, और वह मेरे आधार, वोटर आईडी और बैंक खाते सहित मेरी सभी कागजी कार्रवाई में यही नाम सूचीबद्ध है।"
पेचियम्मल ने स्वीकार किया कि यह उसके लिए कठिन दौर था, पहली बार में रूप बदलना मुश्किल था। "अपनी बेटी की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, मैंने इन कठिनाइयों से गुजरना चुना।"
ऐसे समय में जब मैं जीविकोपार्जन के लिए अधिक यात्रा करना पड़ता था, एक आदमी के वेश में मुझे किसी भी जगह और काम पर खुद को सुरक्षित महसूस करती थी।
बसों में मैं अपनी पहचान छुपाने के लिए हमेशा पुरुषों के सीट पर बैठती थी। मैं पुरुषों के टॉयलेट भी जाती थी (संभवतः पुरुष भेष में महिला टॉयलेट जाना परेशानी का कारण बन सकती थी)।
उन्होंने कहा, "सरकार द्वारा महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा की योजना के बावजूद अपने पुरुष रूप को बनाये रखने के लिए मैंने बस किराए का भुगतान किया।"
'इच्छाएं पूरी हुईं'
पेचियम्मल जो अब 57 वर्ष की हो चुकी हैं वह अब अपने काम से संतुष्ट है।
"अब जबकि मेरी बेटी की शादी हो चुकी है, मुझे विश्वास है कि मैंने अपने सभी लक्ष्य हासिल कर लिए हैं।"
मैं मरते हुए भी इसी तरह याद किया जाना चाहती हूं। अगर मुझे सरकारी पेंशन मिलती है, तो मैं अपना शेष जीवन भी एक पुरुष की तरह जीऊंगी।
"मैं बहुत सारी योजनाओं के लिए योग्य नहीं हूँ," (सभी डाक्यूमेंट्स में खुद पुरुष घोषित करने के कारण) उसने कहा।
उनकी बेटी शनमुगसुंदरी समेत कुछ ही लोग उनकी मुश्किलों और परिस्थितियों से वाकिफ थे।
"में माँ ने अपना पूरा जीवन मेरे लिए समर्पित कर दिया।" "मुझे आशा है कि उसे सरकार द्वारा पेंशन मिलेगा," शनमुगसुंदरी ने टिप्पणी की।